जयभीम के जनक बाबू हरदास....!!!

लेकिन बाबू हरदास और उनके रामटेक सत्याग्रह के उल्लेख के बिना यह क्रांति अध्याय अधूरा रह जायेगा. बाबू हरदास (१९०४-३४) ने बंसोडे और जाई बाई के काम को आगे बढ़ाया. १९२१ में उन्होंने दलितों में जागृति लाने के लिए एक अख़बार 'महाराठे' निकला और बीड़ी मजदूरों का शोषण रोकने के लिए सहकारिता के आधार पर काम शुरू किया. महिलाओं की दशा सुधरने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र खोला. १९२२ में उन्होंने महार समाज संगठन और एट्रोसिटी रोकने के लिए महार सेवक पथक बनाया. ये संगठन दलितों के बीच अनुशासन लाने का काम भी करता था. दलितों में एका लाने के लिए उन्होंने उपजाति कतमा करने के प्रयास किये. १९२३ में उन्होंने गवर्नर से असेम्बली और नगरीय निकायों में दलितों का प्रतिनिधि नामित करने की मांग की. समुदाय में शिक्षा का प्रसार करने के लिए उन्होंने कई नाइट स्कूल खोले और अंधविश्वास ख़त्म करने के लिए 'मंडई महात्म्य' नाम की पुस्तक लिखी, जिसका काफी असर हुआ. उन्होंने १९२७ में किसान फागुजी बंसोडे की मौजूदगी में नागपुर के पास स्थित रामटेक में दलित समुदाय से आह्वान किया कि वे रामटेक के मंदिर में पूजा न करें और न ही गंदे अम्बाडा तालाब में नहायें. साथ ही नासिक में मंदिर प्रवेश आन्दोलन में भाग लेने के लिए एक दल भेजा. १९३० में नागपुर में दलित परिषद के आयोजन में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई, जिसमें डा. आंबेडकर की मौजूदगी में दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई. यहीं ऑल इंडिया डिप्रेस क्लास फेडरेशन का गठन हुआ और वे सह सचिव चुने गए. १९३२ में उन्होंने मध्यप्रदेश बीडी मजदूर संघ की स्थापना की. १९३७ में वे नागपुर-कामठी से असेम्बली सदस्य चुने गए.
बाबू हरादस ने नागपूर जिले के कामठी स्थित अपने घरसे बाबासाहब डॉ.आंबेडकर के आंदोलन को आगे बढ़ाया.. वह घर आज खंडहर के रुप में तब्दील हो गया.. जिस जगह उनके देह को मिट्टी दी गयी उस कन्हान नदी के किनारे पर उनकी समाधी पुरी तरह से उपेक्षित है.. वैसे हर साल 12 जनवरी को "हरादस यात्रा" का आयोजन करके बाबासाहेब के अनुयायी हजारों की संख्या में एकर होकर अपने थोर सेनानी के स्मृति को विनम्र अभिवादन करते है.. हमारे समाज के पुढारी इस यात्रा में आकर जोर-सोर से भाषण देकर चले जाते है.. लेकिन उनकी स्मृती भूमि के तरफ जाकर देखते भी नहीं की किस हालत में जर्जर अवस्था में है.. यह भूमी "हरदास घाट' नामसे नागविदर्भ में प्रसिद्ध है.. लेकिन इस परिसर में कुछ असामाजिक तत्त्वों ने अवैध तरीके से कहीपर वैकुंठ धाम, तो कही पर शांतीघाट इस नाम से सर्रास अतिक्रमण करवाया है.. जिस लष्करी विभाग ने बाबू हरदास इनके स्मृति भूमी के लिए जगह देने के लिए आनाकानी की थी.. उस जगह पर असामाजिक तत्त्वों के अवैध अतिक्रम को लष्करी विभाग कैसा दुर्लक्ष कर रहा है.. इसके साथ ही "हरदास घाट' की पहचान को नष्ट करने का प्रयास करनेवाले अतिक्रमणियों के अन्याय को नागपूर-कामठी का आंबेडकरी समाज कैसा सहन कर रहा है.. ऐसा प्रश्न भी आज निर्माण हो रहा है...
सन 1940 से बाबू हरदास इनके सहकारी गौरीसंकर गजभिये इन्होंने बाबू हरादस इनके स्मृति भूमी को प्रकाश देने के लिए समाधी की जगह पर `हरदास यात्रा` सुरू की. विदर्भ के आंबेडकरी अनुयायी हर साल 12 जनवरी को बडीं संख्या में इकट्ठा होती थी.. इस वजह से आंबेडकरी आंदोलन से जुड़े छोटे-मोठे नेताओं द्वारा दिये हुए मार्गदर्शन से आंबेडकरी जनता में उत्साह संचार होता था.. इसी दरम्यान नागपूर जिले में भव्य व दिव्य ड्रैगेन पैलेस की इमारत खड़ी की गयी लेकिन बाबू हरदास इनके समाधी की दूर्दशा जैशी थी वैसे ही कायम है.. आंबेडकरी आंदोलन के केंद्रबिंदू रहने वाले बाबू हरदास इनकी समाधी 15 बाय 15 फीट के जगह पर मर्यादीत रह गयी.. इसी जगह पर दुसरे एक आंबेडकरी नेते व बीडी मजदूरों के नेता एड. ना.ह.कुंभारे इनके पार्थिव को भी चिरशांती दी गयी.. उस पर भी एक वास्तू खडी की गयी.. उसके उत्तर और दक्षिण दीशा की ओर बाबू हरदास इनके कट्टर समर्थक मेंढे गुरुजी अर्था भदन्त धीरधम्म व नागपूर नगर के माजी महापौर सखाराम मेश्राम इनके समाधी की भी बुरी तरह दुर्दशा हो गयी है.. लेकिन अभी तक किसी भी आंबेडकराईट संगठन व नेताओं का ध्यान इस ओर नहीं गया.. यह बड़ी दुख की बात है... बाबू हरदास इनके स्मारक के लिए उनके समाधी परिसर में जमीन मिलिनी चाहिए इसके लिए अनेक अनुयायींने कोशीश की.. लेकिन भारत सरकारके लष्करी विभाग ने इस कोशीश के नाकाम कर दिया... लेकिन उसी जगह पर मनुवादियों के देवीदेवताओं के मंदिर बड़े शान से खड़े है.. लेकिन इसके लिए लष्करी विभाग ने कोई भी हो हल्ला नहीं मचाया.. और विरोध भी नहीं किया.. लष्करी विभाग का विरोध सिर्फ आंबेडकरी आंदोलन से जुड़े हुए सैनिकों के भूमी के लिए है.. ऐसे मनुवादी लष्करी विभाग और केंद्र सरकार के साथ हमारे नेताओं की सांठगाठ रहने के कारण यह आंदोलन अब ठंडा पड़ गया.. इसिलिए इस आंदोलन को अधिक गती देने के लिए सभी आंबेडकरी अनुयायीओं को फिर से एकजूट होना पड़ेगा..
बाबू हरदास ने छोटे से जीवनकाल में दलित समुदाय का चेतना स्तर काफी ऊंचा उठा दिया. उनके जीवनकाल की समाप्ती 12 जनवरी 1939 को सुबह 3 बजे नागपुर में हुई. ऐसे त्यागी, जयभीम के जनक बाबू हरदास को समस्त बहुजन बांधवों के द्वारा जयभीम...!!!

जयभिमला रिप्लेस करणारी जयमूलनिवासी चळवळ आजच हाणुन पाडणे अत्यंत गरजेचे आहे. जर तुम्ही भीमाचे सच्चे बच्चे असाल तर आज पासुन जय मूलनिवासी म्हणने सोडा अन बाबासाहेबांच्या हयातीत अस्तित्वात आलेला वैभवशाली जयभिम परत एकदा आभाळ्याच्या पार जाईल ईतक्या जोरात भीमगर्जना करा...!!!
जयभीम हे नक्की केव्हा पासून वापरणे सुरू झाले?
ReplyDeleteजयभीम.....
ReplyDeleteजयभिमला रिप्लेस करणारी जयमूलनिवासी चळवळ असे तुम्ही म्हणता ते कदाचित तुमचे मत माहितीच्या अभावातून झाले असावे. बामसेफ कार्यकर्ते जयभीम म्हणत नाहीत असे तुम्हाला कोणी सांगितले ? अहो ते ज्या एससी एसटी ओबीसी च्या लोकांना जोडण्यासाठी " हम भारत के मूलनिवासी " म्हणून जोडतात ते एससी एसटी ओबीसी चे कार्यकर्ते अभिवादन करतांना "जयभीम "म्हणतांना आम्ही पाहिले.विचाराचा प्रचार कसा करायचा ही साधी बाब नाही. ... नाही तर आज ... जय अण्णा , जय जिजाऊ , जय ज्योती , असे असंख्य अभिवादन आहेत. यावर एकच उपाय जयभीम व्हाया जय मूलनिवासी